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वस्त्र

अनुक्रमिका

1. कांड- भोर का इंतजार
2. कांड- स्वर्ग से सुंदर
3. कांड- हुस्न, जवानी और इश्क
4. कांड- मर्ज-ए-इश्क
5. कांड- बिरहा तू सुल्तान
6. कांड- रंग में भंग
7. कांड- बगावत
8. कांड- प्रेम पत्र
9. कांड- लंबी उड़ान
10. कांड- नई सेज, कुंआरी काया
11. कांड- भूल गई यार
12. कांड- टूर डी फ्रांस
13. कांड- इब्तदा (शुरूआत)
14. कांड- पुरातन कथा नये पात्र
15. कांड- कुत्ते की पूंछ
16. कांड- मां
17. कांड- सिविल वार
18. कांड- वेश्या
19. कांड- हमराही
20.कांड- नींद न देखे बिस्तरा

 

-सावधानी-

इस नावल क ी क हानी क ाल्पनिक है तथा इस मंे वर्णित
घटनायें, वृत्तांत व पात्रों क ा यथार्थ से क ोई सबध नहीं है
अगर कसी वास्तविक तथा निजि जिंदगी से विवरण
मिलता हो तो यह महज एक इत्तफ ाक होगा।

 

1. कांड- भोर का इंतजार

 

”ऐंह…….हैं….ऐं…हां….।” मैं एकदम ठिठक कर जाग गई, डर से मेरा वजूद इस तरह कांप उठा, जैसे बज रही सांरगी की तार में क ंपन होती है। हैरान परेशान होकर इधर-उधर देखने लगती हूं…..अरे ? ये तो मैं कोई सपना देख रही थी। मैं तो अपने घर में, अपने पलंग पर लेटी हुई हूं। यहां नदी कहां ? अभी-अभी देखा सपना मुझे दुबारा याद आने लगता है।

दूर-दराज, किसी अन्जान सी जगह में कोई अज्ञात सा गांव है। शायद यह एशिया का कोई पुराना गांव होगा। प्राचीन समय में घूम रही थी मैं। कु छ जवान लड़कियों की टोली बनाकर गांव से बाहर नदी पर नहाने के लिए जाती हैं। एक पशु चरा रहा लड़का उन्हें छेड़ता है। वे लड़कियां उस चरवाहे की ओर कोई तबज्जो दिए बिना आगे निकल जाती हैं। चरवाहा उनकी बेपरवाही क ो अपनी बेइज्जती समझ कर उन लडकियों का चुपके-चुपके पीछा करने लग जाता है। लड़कियां आगे जाकर सुनसान नदी के किनारे अपने कपड़े उतारकर रख देतीं हैं तथा नहाने लग जाती हैं। वे गीत गा-गाकर एक दूसरी को रगड़-रगड़ कर नहलाती हैं। कौन सा गीत गाती थीं वे ?…हां गाने के बोल कु छ इस प्रकार थे……..

”उजड़ा बुर्ज लाहौर का ते हेठ व्गे दरिया,
मल-मल नावण गोरीयां ते लैज गुरां दा नां…”

कांड 2 -स्वर्ग से सुंदर

 

हरा-भरा संसार था हमारा। मैं अमी, अब्बू, मेरी दो बहनें तथा दो भाई। ये थी हमारी दुनिया। एक बहन के बिना बाकी सभी मेरे बहन-भाई मुझे से छोटे थे। नाजीया सबसे बड़ी थी। उसके दो साल बाद मेरा जन्म हुआ था। मुझ से सलीम एक साल छोटा था। सलीम की पैदायश से पूरे तीन साल बाद गफूर का जन्म हुआ था, तथा आगे राजीया का गफूर से चार साल का अंतर था। आम मुस्लिम परिवारों की तरह हमारा परिवार भी चाहे कु छ बड़ा ही था। लेकिन फिर भी हम में से कोई भी किसी दूसरे सदस्य को गैरजरुरी नहीं समझता था। कोई भी किसी दूसरे सदस्य को गैरजरुरी नहीं समझता था। जुराब से लेकर सिर की चुनरी तक जैसे एक औरत के पहने हुए सभी वस्त्रों का अपना-अपना महत्त्व होता है। सलवार की जगह कु त्र्ता या ब्लाऊज़ की जगह पेटीकोट नहीं पहना जा सकता। वैसे ही परिवार में सभी सदस्यों की अपनी-अपनी अहमीयत होती है। किसी भी सदस्य को हमारे परिवार में से अलग करके नहीं देखा जा सकता था। हम सभी में इतना ज्यादा प्यार था कि हम एक दूसरे की सौगंध तक नहीं उठाते थे।

 

कांड 3- हुस्न, जवानी व इश्क

मुझे बचपन में देखकर लोग कहा करते थे कि मैं अमर-बेल की तरह बढ़ती जा रही हूं। मैं पूरे पंद्रह साल व छ: महीने की हो गई थी। ये इतने साल बीतने का अहसास ही नहीं हुआ था। पंद्रह साल जैसे पंद्रह साल तो लगते ही नहीं थे। ऐसे लगता था जैसे पंद्रह सैकिंड हों। मैं अल्हड़ व भोली-भाली सी थी। मेरे चेहरे से मासूमियत ही मासूमियत झलकती रहती थी। मेरे बदन ने बचपन को विदा करके जवानी का स्वागतम ताजा-ताजा ही किया था। यौवन किसे कहते हैं, इसका मुझे पता ही नहीं था। हां, इतना ही जानती हूं कि उस समय सूर्य को देखकर मेरा दिल किया करता था कि उसे पकड़ कर साबुत निगल जाऊं। नहाते समय या कपड़े बदलते समय शरीर गर्मागम भाप छोडऩे लग जाता था। सारे शरीर में से सेंक निकलते लगता। शरीर का प्रत्येक अंग गर्माहट छोड़ता। अपने अंदर धधक रही आग को बुझाने के लिए मेरा बर्फ के पहाड़ पर लेटने को दिल चाहता। बार-बार पानी पीना, बहुत प्यास लगना। दिल में आता कि कोई बहुत बड़ा समुंदर हो, कोई महासागर तथा मैं उसे एक ही घंूट में पी जाऊं ताकि मेरी प्यास बुझ सके। भटकन, एक प्यास सी हर समय लगी रहती थी। शायद इस आग का नाम ही जवानी होगा।

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